Seven Chakra Meditation

सप्त चक्रों के ध्यान करने की विधि-

मूलाधार चक्र-
इसके अभ्यास के लिए पहले किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा व अंजलि मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। सप्तचक्र ध्यान का अभ्यास शवासन में भी किया जा सकता है। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा से 4 अंगुली ऊपर मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र पर मन को एकाग्र करें।

स्वाधिष्ठान चक्र-
पहली विधि के बाद अपने ध्यान को उपस्थ में स्थित स्वाधिष्ठ चक्र पर ले जाएं और 6 पंखुड़ियों वाले कमल के नारंगी रंग के फूल की कल्पना करें। साथ ही कल्पना करें कि इसकी सभी पंखुड़ियां आपस में कली की तरह मिली हुई है। इस कमल के फूल को अपनी आंतरिक दृष्टि से देखने तथा मन को वहां केन्द्रित करते हुए एक के बाद एक पंखुड़ियों को खिलाएं। जब पूर्ण रूप से नारंगी रंग का कमल खिल जाए तो उसके सौन्दर्य को महसूस करें और उसके आनन्द का भी अनुभव करें। इस तरह कुछ समय अपने मन को वहां स्थिर करके उस चक्र पर ध्यान को केन्द्रित करें।

मणिपूर चक्र-
स्वाधिष्ठ चक्र के बाद अपने मन को नाभि के पास स्थित मणिपूर चक्र में केन्द्रित करें। मन में कल्पना करें कि नाभि में पीले रंग का 10 दल वाला कमल का फूल है, जिसकी पंखुड़ियां आपस में मिली हुई है। ध्यान चक्र का अभ्यास करने वाले को चाहिए कि अपने मन को एकाग्र कर अपनी कल्पना के द्वारा उस फूल को खिलाएं और उससे मिलने वाले आनन्द का अनुभव करें। इस तरह पीले रंग के खिले हुए कमल के फूल पर अपने मन को कुछ देर तक केन्द्रित करें। इसके बाद अनाहत चक्र पर स्थिर करें।

अनाहद चक्र-
मणिपूर चक्र पर ध्यान लगाने के बाद अपने ध्यान को अनाहत चक्र अर्थात हृदय के पास स्थित चक्र पर लगाएं। मन को एकाग्र व शांत रखते हुए 12 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की कल्पना करें। कल्पना करें कि हृदय के पास चक्र में 12 पंखुड़ियों वाला कमल का फूल है, जिसका रंग हरा हैं और इस फूल की सभी पंखुड़ियां आपस में बन्द है। इसके बाद अपनी आंतरिक दृष्टि से कमल की सभी पंखुड़ियों को खिलाएं और कुछ समय तक इस पर ध्यान को केन्द्रित करें। इसके बाद विशुद्धि चक्र पर ध्यान केन्द्रित करें।

विशुद्धि चक्र-
हृदय के पास स्थित चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने के बाद अपने ध्यान को कंठमूल में स्थित विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित करें। इस चक्र पर ध्यान करते हुए आसमानी रंग के 15 दलों वाले कमल के फूल की कल्पना करें। इसके बाद अपनी आंतरिक दृष्टि को केन्द्रित करते हुए अपने मन में कमल की एक-एक पंखुड़ियों को खिलाते हुए स्थिति की कल्पना करें। फिर खिले हुए फूल की सुन्दरता के आनन्द को प्राप्त करते हुए कुछ समय तक अपने मन को वहीं स्थिर रखें।

आज्ञा चक्र-
अपने ध्यान को दोनों भौंहों के बीच भ्रूमध्य में स्थित आज्ञा चक्र पर लाएं। इस चक्र में 2 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की कल्पना करें जिसका रंग भूरा है। इसकी भी दोनों पंखुड़ियां आपस में मिली हुई है। आंतरिक दृष्टि से उस कमल के फूल को स्पष्ट करने की कोशिश करें और अपने मन को केन्द्रित करते हुए कमल की पंखुड़ियों को खिलाते हुए चित्र की कल्पना करें। खिले हुए कमल के फूल को देखें और कुछ समय तक अपने मन को उस चक्र पर केन्द्रित करें। इसके बाद ध्यान को सहस्त्रार चक्र पर केन्द्रित करें।

सहस्त्रार चक्र-
कंठमूल के पास स्थित चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने के बाद सहस्त्रार चक्र पर अपने ध्यान को केन्द्रित करें। यह ध्यानाभ्यास पहले के सभी अभ्यास से अलग है। अपने ध्यान को एक-एक कर सभी चक्रों पर केन्द्रित करते हुए ऊपर के स्थित सहस्त्रार चक्र पर स्थिर किया जाता है। पहले सभी चक्रों का ध्यान करते हुए कमल के बन्द फूल की कल्पना की जाती है और उसे अपनी आंतरिक दृष्टि से स्पष्ट करने की कोशिश की जाती है। परन्तु इस चक्र में अपने ध्यान को केन्द्रित करते हुए अधोमुख अर्थात आधे खुले हुआ कमल के फूल की कल्पना की जाती है। इसमें अपने ध्यान को सहस्त्रार चक्र में लगाते हुए कल्पना करें कि अधोखुले कमल के फूल है। सातवें चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना ध्यान का सबसे अंतिम ध्यानाभ्यास है। इसका ध्यान करने से मन में सुख, शांति और सत्य का ज्ञान का अनुभव होता है। ध्यान की यात्रा मूलाधार चक्र से शुरू होकर सहस्त्रार चक्र में समाप्त हो जाती है।

अंतिम चक्र पर ध्यान का अभ्यास करते समय अपने मन को मस्तिष्क के बीच वाले भाग में स्थित सहस्त्रदल कमल के फूल पर स्थिर करें। मन को उस पर केन्द्रित कर कल्पना करें कि उस फूल में सभी रंग मौजूद है और वह नीचे की ओर खिला हुआ है। ध्यान करें कि यह चक्र प्रतिबिम्बों का सागर, सभी चेतनाओं का केन्द्र, यह वर्तमान, भूत और भविष्य है तथा मानव जीवन का यही आदि और अंत है। कुछ देर मन को एकाग्र करने के बाद मूलाधार चक्र के ठीक विपरीत ध्यान का त्याग सहस्त्रार चक्र में करें।

इस तरह सहस्त्रार चक्र पर कुछ समय तक ध्यान को केन्द्रित रखें। फिर सहास्त्रार चक्र से अपने ध्यान को हटा लें और अपने ध्यान को भौंहों के बीच स्थित आज्ञा चक्र पर लाएं। भौंहों के बीच स्थित कमान पर अपने ध्यान को एकाग्र कर खुले हुए कमल की पंखुड़ियों को बन्द करें। इसके बाद कंठमूल में स्थित विशुद्धि चक्र पर ध्यान करें और खिली हुए पंखुड़ियों को बन्द कर दें। फिर हृदय के पास स्थित अनाहत चक्र पर ध्यान को लाकर फूल की खिली हुई पंखुड़ियों को बन्द करें। इसके बाद नाभि में स्थित मणिपूर चक्र पर ध्यान को लाएं और खिले हुए फूल को बन्द करें। फिर अपने ध्यान को स्वाधिष्ठान चक्र पर लाएं और फूल की पंखुड़ियों को बन्द करें। इसके बाद अपने ध्यान को नीचे स्थित मूलाधार चक्र पर लाएं और खिले हुए फूल की पंखुड़ियों को बन्द कर अपने मन को आंतरिक चेतना से बाहर निकालें अर्थात ध्यानावस्था से बाहर निकाले और अपने शरीर का ज्ञान करें। जिस आसन में बैठे है या लेटे हैं उस आसन का ज्ञान करें। फिर आसन को त्यागकर सामान्य स्थिति में आ जाएं। पैरों के पंजों को ऊपर नीचे चलाएं तथा सिर को दाएं-बाएं घुमाएं। मुट्ठी को 4 से 5 बार बन्द करें और खोलें। दोनों हाथों को आपस में रगड़ें और अपनी आंखों व मुंह पर सहलाएं। हाथों से कुछ देर तक आंखों को बन्द करके रखें और 4 से 5 बार आंखों को खोले व बन्द करें। कुछ समय तक मौन व शांत स्थिति में बैठे रहें और फिर अभ्यास की स्थित का त्याग करें।

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